हरेक को कैश : ऐसी खबरें हैं कि आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम उर्फ सबको न्यूनतम आय पर व्यापक विमर्श होगा. रोजगारविहीन विकास का दौर यह है यह. मतलब विकास हो सकता है, पर रोजगार उससे कईयों को मिले, ऐसा जरूरी नहीं है. रोबोट, कंप्यूटरों के चलते विकास की रफ्तार तो पढ़ सकती है पर इनसानी रोजगार अवसर स्थिर रह सकते हैं.
तो ऐसी सूरत में सरकार एक काम यह भी कर सकती है कि आर्थिक तौर पर कमजोर हर बंदे के खाते में एक तय रकम का हस्तांतरण कर दे. जनधन खाते इस हस्तांतरण का माध्यम हो सकते हैं. करीब 25 करोड़ जनधन खातों में एक हजार रुपये महीने का हस्तांतरण किया जाये, तो भी एक न्यूनतम रकम आर्थिक तौर पर विपन्न लोगों के पास आ सकती है. इस काम के लिए करीब तीन लाख करोड़ रुपये सालाना की दरकार होगी. यह रकम छोटी नहीं है. 2016-17 में सर्विस टैक्स से कुल जितनी रकम के संग्रह का अनुमान है, यह रकम उससे भी ज्यादा है. पर सबको आय का मामला एक स्मार्ट राजनीतिक दावं भी है और रोजगार के मौकों को पैदा करने में विफलता को ढंकने का परदा भी.
रोजगार का मसला : रोजगार बड़ा मसला है. सिर्फ आर्थिक नहीं, राजनीतिक मसला है. देखा जा सकता है कि हरियाणा का जाट आंदोलन, गुजरात का पटेल आंदोलन और राजस्थान का गूर्जर आंदोलन, इस सबके मूल में कहीं ना कहीं सिर्फ रोजगार नहीं, बेहतर रोजगार का मसला है.
सिर्फ नौकरी नहीं, ठीक ठाक रोजगार चाहिए. अपना काम, अपना स्टार्ट अप शुरू करने को तैयार हैं युवा, पर उनके लिए कुछ सस्ते कर्ज हों, आसान कर्ज शर्त हों. बजट से उम्मीद की जानी चाहिए कि बहुत ही छोटे कारोबारियों के लिए सस्ते और बेहतर कर्ज का जुगाड़ होगा. तकनीक जिस तरह से पंख फैला रही है, उसे देखते हुए रोजगार के अवसर बहुत तेजी से बढ़ने के आसार दिखाई नहीं देते. निजी घरेलू छोटे कारोबारों को किस तरह से वित्तीय सहारा वित्तीय संस्थान दे सकते हैं, आसान शर्तों पर, इस सवाल को बजट को हल करना होगा.
Comments
Post a Comment